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बुधवार, 22 अप्रैल 2020

सदाचार भाग 5:स्वामी व्यासानंद

जय गुरु
 सदाचार भाग 5 
आप लोगों के सामने प्रस्तुत है👇
 ✍👉जैसे किसी गलती को छिपाने के लिए
 आदमी झूठ बोल जाता है
 किसी की हत्या करने के लिए 
आदमी हिंसक बन जाता है।
 अपने को मदमस्त करने के लिए 
आदमी नशा सेवन कर लेता है।
 पर चोरी करने वाला झूठ का सहारा भी लेता है छुपाता  भी है और दूसरे को दुखी भी करता है।
 परंतु व्यभिचार तो सबसे भयंकर महा पापों में से है।
 क्योंकि इसके लिए तो आदमी को झूठ भी बोलना पड़ता है 
छिपाना पड़ता है महा उन्मत्त बनना होता है।
 धर्म मर्यादा का हनन भी करना पड़ता है
 और पांचवा महापाप तो यह  है ही।

 मैंने एक बार किसी बौद्ध भिक्षु के मुख से
 एक असत्य त्यागी चोर का दृष्टांत सुना था 
वह इस प्रकार से है कि

" कोई चोर एक रात चोरी के लिए निकला
 रास्ते में उसे एक साधु की कुटिया दिखलाई दी
 उसने सोचा कि क्यों ना उस साधु के पास जाकर आशीर्वाद ले आऊं ।
 जिससे मेरी यात्रा शुभ हो जाए और 
चोरी में बहुत सारा माल मिल जाए 
ऐसा विचार कर वो उस साधु के पास जाकर 
अपना प्रणाम निवेदित किया।
 मध्य रात्रि के समय कुटिया के अंदर आने वाले एक अनजान आदमी को देखकर साधु  चौंक पड़ा
 और पूछा अरे इतनी रात को मेरी कुटिया के अंदर आने वाले तुम कौन हो?
 चोर बोला- महाराज मैं चोर हूं 
साधु ने पूछा:- तुम यहां किसलिए आए हो
 चोर बोला:- महाराज आप से आशीर्वाद लेने के लिए साधु बोला:- मुझसे क्या आशीर्वाद लेना चाहते हो 
चोर ने कहा:- महाराज आज मैं  जहां चोरी के लिए जा रहा हूं वह राजा का घर है
 वहां मुझे यथेष्ट वस्तु चोरी में मिलेगी परंतु
 महाराज वहां दरबार में पहरा सख्त है ।
कहीं पकड़ा गया तो सब दिन की कसर एक ही दिन में निकल जाएगी 
इसलिए आप से आशीर्वाद चाहता हूं कि
 मैं वहां चोरी में सफल हो  जाऊं।
 साधु बोला:- छी! मुरख आशीर्वाद भी मांगने को आया तो तू चोरी के लिए एक साधु के पास आकर भी
 दुष्कर्म करने की प्रवृत्ति रखता है 
क्या पाप का डर नहीं लगता
 खबरदार! यदि तू मेरे पास आया है तो सुन 
आज दिन से कभी चोरी नहीं करना 
चोर बोला:- महाराज आपके कहने से मैं दुनिया के सब पापों को छोड़ सकता हूं पर
 चोरी कदापि नहीं छोड़ सकता 
साधु बोला:- ठीक है तुम चोरी नहीं छोड़ सकता 
परंतु आज दिन से झूठ ही बोलना छोड़ दे 
फिर मैं तुम्हें आशीर्वाद दूंगा ।
चोरने महात्मा जी के चरणों को छूकर संकल्प लिया
 कि आज दिन से वह कभी झूठ नहीं बोलेगा
 महात्मा जी ने खुश होकर आशीर्वाद दे दिया ।
वह चोर प्रसन्न चित्त राजमहल बढ़ा 
दरबार के द्वार पर जब पहाड़ा पहला पहरेदार मिला तो उसने उससे पूछा
 अरे तुम कौन हो आगे कहां जा रहे हो ?
उसने निर्भयता पूर्ण उत्तर दिया मैं चोर हूं
 और चोरी करने के लिए जा रहा हूं।
 पहरेदार के मन में हुआ और सोचा कि चोर कहीं इस प्रकार ढिठाई से बोल सकता है अवश्य राजा का कोई खास आदमी होगा 
पहरेदार हाथ जोड़कर कहता है महाराज क्षमा करना ।
हमसे भूल हो गई मुझसे गलती हो गई 
मैंने आपको पहचाना नहीं कृपा कर राजा से यह
 वृत्तांत नहीं बतला देना।
 चोर और आगे बढ़ा महल के पास दूसरे पहरेदार के पास पहुंचा
 उसने भी इससे पूछा 
अरे तुम कौन हो आगे कहां जा रहे हो
 चोर ने उस पहरेदार से भी कहा मैं चोर हूं 
महल में चोरी करने जा रहा हूं 
दूसरे पहरेदार ने भी सोचा कि कहीं चोर इस प्रकार
 बोल सकता है अवश्य राजा का कोई विशिष्ट आदमी होगा
 चोर से क्षमा मांगते हुए महल में जाने का
 रास्ता दे दिया।
 चोर निर्भयता पूर्वक महल में घुस गया वहां 
उसने देखा कि राजापुर गहरी नींद में सोया पड़ा हुआ है।
 झटपट इधर उधर से समस्त कीमती रत्न आभूषण को उसने समेटकर झोली में भर लिया
 और वापस चल दिया ।
पहरेदार ने सोचा कि राजा साहब ने इन्हें भेंट के
 स्वरूप में  सब कुछ प्रदान किया है।
 नमस्कार कर चोर को विदा किया
 चोर घर आकर सोचने लगा कि
  महात्मा जी ने अच्छी युक्ति बतलाई।
 आज महात्मा जी के कहने से एक पाप
 झूठ को छोड़ दिया तो इतना लाभ हुआ 
यदि इनकी बात मान कर सभी पाप को छोड़ दूं
 तो कितना लाभ होगा
 उस दिन से उन्होंने महात्मा जी के पास जाकर समस्त पापों को छोड़ने का संकल्प ले लिया।
 सवेरे जब राजा की नींद टूटी तो देखा कि
 महल के अंदर के समस्त रत्न आभूषण गायब है ।
वह हैरत में पड़ गया कि इतने पहरेदार के रहते हुए
 भी रत्न आभूषण कैसे गायब हो गए
 राजा ने पहरेदार को बुलाकर पूछा
 पहरेदार भी चकित पर थोड़ी देर सोच विचार कर
 रात्रि की सारी बातें राजा को बता दी।
 राजा ने राज के समस्त चोर की छानबीन करने के लिए सिपाही को भेजा 
सिपाही ने समस्त प्रसिद्ध चोर के चोरों को भी 
पकड़कर राजा के समक्ष ले आया 
एक-एक करके राजा ने आभूषण की चोरी के विषय में सभी चोरों से पूछा
 सभी चोरों ने हाथ जोड़कर कह दिया कि
 महाराज हमने चोरी नहीं की है ।
आखिर में राजा ने पूछा क्या
 तुमने ही आभूषण की चोरी की है 
चोर ने कहा हां महाराज मैंने चोड़ी की है और
 सारे पहरेदार बोल कर चोरी की है ।
तब राजा ने चकित होकर चोर से कहा 
चोर होकर शत-शत बतला रहा है कि मैंने चोरी की है
 क्या तुझे अपनी जान का डर नहीं है ।
चोर ने कहा क्या कहूं महाराज 
मैंने एक साधु के चरणों को छूकर संकल्प लिया है
 कि आज से झूठ नहीं बोलूंगा 
फिर एक तुच्छ  जान के डर से 
झूठ कैसे बोल सकता हूं ।।
राजा चोर की बात सुनकर प्रसन्न हुआ 
और मन में सोचा कि मेरे राज में तो ऐसे ही
 सत्यवादी आदमी की जरूरत है 
क्यों ना इसे अपना मंत्री बना लूं ।
राजा ने चोर से कहा:- देखो आज दिन से तुम चोरी करना छोड़ दो 
मैं तुझे अपने राज का मंत्री बना देता हूं ।
उस चोर ने राजा से कहा महाराज 
आप केवल चोड़ी छोड़ने के लिए कह रहे हैं ।
मैंने तो उसी रात उसे संत के चरणों में जाकर
 समस्त पापों को छोड़ने का संकल्प ले लिया।
 राजा और भी अधिक प्रसन्न हुआ और
 अपनी इकलौती पुत्री के साथ उसकी शादी करके
 अपने राज्य के सिंहासन पर उसे प्रतिष्ठित कर दिया 
और स्वयं तपस्या के लिए जंगल चला गया ।
यह सदाचार पालन की महिमा।।"

 परम भक्त मीराबाई ने परमात्मा के लिए
 अमोलक शब्द का प्रयोग किया था
 यथा मैंने लीनो अमोलक मोल अर्थात
 परमात्मा अमूल्य है
 वह बिना मूल के ही मिलते हैं 
संसार के समस्त पदार्थ
 मूल देकर प्राप्त होते हैं
 पर मेरा तो ख्याल है कि
 बिना मूल के होते हुए भी
 परमात्मा सबसे महंगी है
 यदि वे सस्ते होते तो 
कब के मिल गए होते अथवा 
सबको मिल गए होते परंतु सुना जाता है।
 बड़े-बड़े ऋषि मुनि महात्मा हजारों हजार वर्ष 
जंगल में घिस घिसकर मर गए 
परमात्मा से मिल नहीं सके ।
बड़े बड़े धनवान गुणवान विद्वान बीरबली
 रूपवान आदि हाथ मलते मर गए
 परंतु प्राप्त नहीं कर पाए और 
जिन से मिलना चाहे उनसे ऐसे मिले कि 
मिलने वाले को भी पता नहीं चला कि 
वे कब मिले 
साड़ी गुणवत्ता अपनी जगह
 धरी की धरी रह जाती है पर उनका प्रतिबिंब तक
 प्रतिभा सित नहीं होता है।
 वह जिन से मिलना चाहते हैं 
बस वही उनसे मिल पाते हैं ।
वरना सारी चतुराई फेल हो जाती है 
पर उनकी थाह नहीं लगती उन्होंने चाहा तो 
 कुबरी कुब्जा से मिल लिए
 पत्थर बनी आहिल्या से मिल लिए
 पिंगला वेश्या से मिल लिए
 बंदर भालू से मिल लिए 
भीलनी शबरी से मिल लिए,
 श्वपच सुदर्शन से मिल लिए 
 कसाई सादना से मिल लिए, डाकू रत्नाकर को भी मिले,
 चमार रविदास को मिले ,यमन पुत्र रसखान को मिले, जुलाहे कबीर से मिले, जाट धन्ना से मिले, वेश्या तुलाधार से मिल लिए, क्षत्रिय जनक से मिले,
 ब्राह्मण सुरतदेव और सुदामा से मिले,
 मुनि से मिले ऋषि अगस्त से मिले
 महात्मा विदुर से मिले 
महर्षि विश्वामित्र से मिले 
महर्षि वशिष्ठ से मिले 
तपस्वी सरभंग से मिले
दानव राजबली से मिले, महात्मा गांधी से मिले ,राजा  जनक  अवश्य से मिले, बहुलाश्य महाराजा मणि से मिले, सम्राट सत्यव्रत से मिले, योगी गोरखनाथ से मिले, भोगी सुग्रीव से मिले ,निरोगी नामदेव से मिले,वियोगी योगी महर्षि मेंही सहित कतिपय श्रेष्ठ पुरुष से मिल लिए
 और गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानस में कहा है ।।

 ।।जय गुरु ।।

सज्जनों इससे आगे अगला अंक में भाग 5 में लेकर आ रहा हूं और पूरा विस्तार के साथ तब तक सत्संगी बंधनों आप लोग पूरा पढ़ लिए होंगे और नीचा में ढेर सारा सत्संग भजन से सजा आर्टिकल है उन सब को पढ़िए और आनंद लीजिए और भी आध्यात्मिक आर्टिकल पढ़ने के लिए फॉलो करना ना भूलिए और कमेंट भी कीजिए जिससे और भी सुधारा जा सके

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