✍✍✍स्वरचित ✍✍✍
आज भी दुख की बात याद आता है
सच कहूँ आंखों में आंसू भर आता है।
पिताजी जब घर में ही बीमार था
उठाने के लिए कोई नहीं तैयार था।।1।।आज......
उस दिन वह भी काम नहीं आया था
जिस वंदा मैं अपने साथ लाया था
अपने हाथों से पढ़ाना सिखाया था
बिना नींद का उस दिन अंठाया था।।2।।आज......
बगल में एक डॉक्टर साहब रहता था
हमेशा दिन रात बातें करते रहता था
मुझे तो उस दिन वह भी ठुकराया था
आधी रात को अपने दर से घुमाया था।।3।।आज......
अपना दियाद रात का बहाना बनाया था
पड़ोस के शर्मा जी ही काम आया था।
उन्होंने ही गोद में पिताजी को उठाया था
हॉस्पिटल ले जाकर इलाज करवाया था।।4।।आज.......
मेरा रूपये तो कितनों के काम आया था
कितनों का समय पर जान भी बचाया था।
उसदिन रूपया के लिए बहुत झल्लाया था
ये उस परम प्रभु सर्वेश्वर की कैसी माया था।।5।।आज.........
''
तरुण''यह दुनिया ने एक बात बताया था
रूपये नहीं रहने पर कोई काम न आया था
आज भी दुख की बात याद आता है
सच कहूँ आंखों में आंसू भर आता है।।
✍✍✍तरुण यादव रघुनियां ✍✍✍
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