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शनिवार, 23 मई 2020

संत सदगुरू महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की वाणी:संसार विंदुमय हैं

SANT SADGURU MAHARSHIMEHI PRAMHANS

संत सतगुरु महर्षि मेंहीं  परमहंस जी महाराज 
बीसवीं सदी के महान संत सतगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी ने कहा "संसार विंदुमय हैं "
सज्जनों आईये सदगुरू महराज के द्वारा दिया प्रवचन को विस्तार से पढ़ें ।।👇 

प्यारे लोगो!
हमको पहले कुछ जानना चाहिए। तब इस जानने
से जो कर्म निर्णय होता है, उस कर्म को करना चाहिए।
पहले ज्ञान सुनने, विचारने से होता है कि संसार क्या
है? 
जीवात्मा क्या है? 
संसार नाशवान और परिवर्त्तनशील
है। 
शरीर में रहनेवाला जीवात्मा शरीर से भिन्न है। शरीर
जड़ है, जीवात्मा चेतन है। जड़ शरीर का ज्ञान अल्प
होता है। इसमें दुःख और सुख होता है। वह योग्य विषय
क्या है जिसको प्राप्त करके भोग-विषय से निवृत्त हो
जाएँ। 
जैसे इन्द्रियों का विषय-रूप, रस, गंध्, स्पर्श और
शब्द है। उसी तरह आत्मा का विषय-परमात्मा है। परमात्मा
को प्राप्त होने पर दुःख-सुख से छूट जाते हैं। केवल
चेतन-आत्मा से ही परमात्मा का ज्ञान होता है। हम
जड़-चेतन को कैसे अलग करें।
 इस जड़ शरीर में हमारा
पफैलाव हो गया है। इसके संग में हम ऐसे लिप्त हो गए
हैं कि शरीर से हम अलग नहीं हो पाते हैं। यह लिप्तता
तब छूटेगी, जब परमात्मा की प्राप्ति होगी। 
हम अपने को
पफैलाव से समेटें। इसी समेटने के क्रम को योग कहते हैं
और भक्ति कहते हैं। केवल श्रवण-मनन से पूर्णता को
प्राप्त नहीं कर सकेंगे। इसलिए ज्ञान और योग दोनों
साथ-साथ है। पहले थोड़ा ज्ञान होता है। इसके बाद ज्ञान
बढ़ता जाता है। पहले श्रवण ज्ञान था, प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं
था। 
जहाँ ज्ञान का अंत है, वहीं ध्यान का भी अंत है।
ज्ञान और योग दोनों को दृढ़ता के साथ धरण करना
चाहिए। जीवन पर्यन्त जैसी भावना रहेगी, मरने के समय
भी वैसी ही भावना रहेगी और उसी तरह का शरीर
मिलेगा।
 ऐसी भावना न हो कि मनुष्य शरीर से अलग हो
जाएँ। लाभ कारण मूल गवायो। ऐसा ख्याल बनाकर मत
रखो कि मनुष्य-शरीर न मिले। मनुष्य-शरीर में मोक्ष की
भावना अवश्य रखनी चाहिए। 
मरने के समय हृदय में
ज्ञान की स्पफुरण होती रहेगी तो नीचे नहीं गिरेंगे। अच्छी
भावना होने से मोक्ष नहीं होगा तो मनुष्य-देह अवश्य
होगा। जिनको जीवनकाल में मोक्ष प्राप्त नहीं हुआ,
परमात्मा की प्राप्ति नहीं हुई, उसको मरने के बाद मुक्ति
नहीं हो सकती है। 
जीवनकाल में जब मालूम हो जाए
कि हम मोक्ष प्राप्त कर लिए, तभी जीवनमुक्ति होती है।
जैसे हम जहाँ तक पुस्तक पढ़ते-पढ़ते सो जाते हैं, जगने
पर पढ़ी हुई बात नहीं भूलते हैं। 
उसी तरह जीवनकाल
में जो सबक याद है उसी को हम सोने के बाद भी उस
सबक को कह सकेंगे, नहीं तो नहीं। 

#संत_दादू_साहब की वाणी में है-

जीवत छूटै देह गुण, जीवत मुक्ता होइ।
जीवत काटै कर्म सब, मुक्ति कहावै साइ।।
जीवत जगपति कौं मिलै, जीवत आतम राम।
जीवत दरसन देखिये,दादू मन विसराम।।
जीवत मेला ना भया, जीवत परस न होइ।
जीवत जगपति ना मिले, दादू बूडे सोइ।।
मूआँ पीछे मुकति बतावै, मूआँ पीछै मेला।
मूआँ पीछै अमर अभै पद, दादू भूले गहिला।।"


जिसकी वृत्ति परमात्मा से मिलने की होती है,
वहीं वहाँ पहुँचता है। ज्यों जल में जल पैस न निकसे यौं ढूरि
मिला जुलाहा ।
मोक्ष में द्वैतभाव छूट कर अद्वैतभाव रहता
है। जो था सो रहा। जो कुछ भी दृश्य देखते हैं, मूल रूप
इसका विन्दु है। दृश्य आकार या रूप एक ख्याल में तो
सब धरों से बने हुए हैं। जल की धरा या मिट्टी की
धरा। हवा अदृश्य है इसमें धर है। 
जैसे पानी की धरा
चलती है, इसी प्रकार हवा की धरा चलती है। 
आँध्ी
स्थान विशेष में आती है। सूर्य से किरणें आती हैं।
अणु-अणु से, विन्दु-विन्दु से, लकीर-लकीर से सारा
संसार विन्दुमय है। 
शब्द धर रूप है। शब्द पवन का ढेव
है। आपके कान में जाकर टकराता है, तब आवाज
सुनने में आती है। विन्दु में भी शब्द था। नाद सूक्ष्म हैऋ
क्योंकि नाद अदृश्य है। परन्तु यह धर रूप है, लकीर
रूप है। 
यह दृश्य नहीं होने के कारण विन्दु से सूक्ष्म है।
यह शरीर भी विन्दु से बना हुआ है।
 इसके अन्दर में
सूक्ष्म विन्दु या ज्योतिर्मय विन्दु है। एक शब्द स्थूल
मण्डल का दूसरा चेतन शब्द है। ज्योतिर्विन्दु यह
शिवशक्ति रूप है। 
सब शरीर शिवालय है। यह मनुष्यकृत
नहीं ईश्वरकृत है। इस शरीर में विन्दु रूप से शक्ति और
नाद रूप से शिव विराजते हैं। शक्ति माया है, शिव
परमात्मा है। जो विन्दु ध्यान करता है, उसी को नाद
ग्रहण करने की शक्ति होती है। 
जो भक्त इस घर को
अच्छा बनाकर रखता है, उसका हृदय शु( होता है।
अशु( हृदय में मलीनता रहती है। विषय विकारों से
भरकर रखना अशु( रखना है। इस घर रखो। शिवलिंग पर लोग बाहरवाला जल चढ़ाता है।

शिव शब्द का अर्थ है कल्याणकारी। परमात्मा के सिवा
कल्याणकारी कौन हो सकता है। शरीर के भौंओं के
बीच में शिवलिंग स्थित है, वहाँ जो दृष्टि को जोड़कर
रखता है, वह अपने को आत्म-निवेदन करता है। नादलिंग
को चौकी कहा गया है। वहाँ चेतन वृत्ति को स्थिर से
बैठाने के लिए है। शरीर आधेय है, चेतन आधर है।
चेतन इन्द्रियों के ज्ञान से रहित है। आत्मा में वजन नहीं
है।
नाप-तौल मायिक पदार्थ में होता है। शरीर का
विकास, अवस्था होती है, आत्मा का नहीं। हवा का
वजन उल्टा है। हवा में कमना है तो आत्मा में कैसे।
अव्यक्त अप्रकट है।
 आधर शक्ति इन्द्रियों के ज्ञान से
रहित है। चेतन तत्त्व निकल जाने से शरीर नहीं रहता
है। 
चेतन दो रूपों में है-व्यष्टि रूप और समष्टि रूप है।
।।जयगुरू ।।
बीसवीं सदी के महान संत सतगुरु महर्षि में हीं के द्वारा दिया गया प्रवचन को आपने पूरा पढ लिये हैं ।
सदगुरू महराज के प्रवचन को अधिक से अधिक शेयर करें जिससे और सत्संगी बंधुओं को लाभ मिल सके ।।
कमेंट्स देना ना भूलियेगा 
!!ऊँ!!

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