यहां पर आप को दुनिया का सबसे शानदार और रोचक तथ्य के बारे में बताया जाएगा और हिंदुस्तान के अलावा पूरा विश्व के बारे में

मेरे बारे में

Breaking

शुक्रवार, 8 मई 2020

संत सतगुरु महर्षि में हींपरमहंस जी महाराज की वाणी:-पतन कैसे होता है?

पतन कैसे होता है?
बीसवीं सदी के महान संत सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी 
महाराज की अमृतवाणी को आप लोगों के सामने प्रस्तुत करने जा रहा हूं 
सदगुरु महाराज ने वर्तमान स्थिति को भांपते हुए उस समय ही बता दिए थे की पतन किस कारण से होता है 
पतन क्यों होता है 
पतन से कैसे बच सकते हैं 
जीवन में उत्थान कैसे हो सकता है 
मानव का कल्याण कैसे हो सकता है
 और मानव का आवागमन का का चक्र कैसे खत्म होगा 
और मनुष्य सुखी कैसे होगा
 मनुष्य को शांति कैसे मिलेगी
 इन सबों को प्रवचन में बहुत ही
 सरल सरल शब्दों में समझाएं हैं
 जिससे कि हर मानव का कल्याण हो सके
 आइए
 जानते हैं की पतन कैसे होता है
 पतन का बचने का उपाय क्या है 
सदगुरु महाराज के शब्दों में
🙏🙏जयगुरू 🙏🙏

👉प्यारे महाशयो!
नैतिक पतन का क्या कारण है? 
अगर अच्छी
राजनीति चाहते हैं, तो आध्यात्मिकता अर्थात् ईश्वरीय
ज्ञान में ऊँचा उठना होगा। जहाँ उत्तम आध्यात्मिकता है
वहाँ उत्तम सदाचार होगा। जहाँ उत्तम सदाचार बना हुआ
है, वहाँ का समाज अच्छा होगा। 
समाज अच्छा होने से
वहाँ की राजनीति अच्छी होगी।
केवल पढ़कर ऊँचे-ऊँचे दर्जे प्राप्त कर लिए हैं
और आचरण ठीक नहीं है, तो वह कहाँ तक नीति का
पालन कर सकेगा। ऐसे व्यक्ति केवल फूस, घूस चोरी,
में लगे रहते हैं। छोटे से बड़े तक घूस के फेर में लगे
रहते हैं। ज्ञान-ध्यान का प्रचार नहीं होने से जो हानि-लाभ
है सो समझिए। आध्यात्मिकता का पालन बड़े-बड़े
लोग करेंगे तो छोटे भी इसका पालन करेंगे।
 छोटे भी
पीछे-पीछे चलेंगे।
संसार में डर बड़ा भारी गुरु है, डर से ही लोग
सब काम करते हैं।
 डर करनी डर परम गुरु डर पारस डर सार ।
 डरत रहै सो उवरै गाफिल खावै मार ।।

जिसको यह ख्याल है कि शरीर के बाद हमारी
अच्छी दशा हो, बुरी दशा न हो।
 वह बुरी दशा में जाने
से डरेंगे। क्या काम करने से बुरी दशा में नहीं जाएँगे
पूछो तो कहेंगे कि उत्तम आचरण से। इस दुनिया में
सुखी से रहें इसके लिए लोग विविध प्रकार का उद्यम
करते रहते हैं। 
उद्यमों को नहीं करेंगे तो अन्न नहीं
मिलेगा। दरमाहा नहीं मिलेगा इस डर से काम में
मुस्तैदी रखते हैं।
 डर से सब इन्तजाम ठीक रखते हैं।
शरीर में तुम हो, तुम शरीर नहीं हो। इस शरीर को
छोड़कर एक दिन जाना पड़ेगा।
 शरीर छूट जाएगा।
दूसरे योनि में चले जाएँगे जिसको इस तरह का डर है
वह आस्तिक है।
 किन्तु जिसको इस तरह का डर नहीं
है वह नास्तिक है।
 उसको डर नहीं कि शरीर चला
जाएगा। जबतक जीओ सुख से जीओ ऋण करके घी
पीओ। 
भस्मी भूत होने पर फिर आवागमन कहाँ? 
किन्तु
मुझे इस बात पर विश्वास नहीं।
 मुझे ईश्वर में विश्वास
है। 
ईश्वर-भजन करो,
 सदाचार का पालन करो।
 जो
सदाचार का पालन नहीं करता है, वह अशांत रहता है।
सदाचार का पालन करने वाले शांति से रहते हैं। तुम
जीवात्मा हो। मन इन्द्रियों को जो सुहाता है, उसे सुख
कहते हैं। इन्द्रियों को जो नहीं सुहात हैं। वह उसे दुःख
कहते हैं। लेकिन यह तो क्षणिक सुख है। किन्तु लोग
कहते हैं कि स्थिर सुख मिलें। मन इन्द्रियों का जैसे
भिन्न-भिन्न विषय है, उसी प्रकार चेतन-आत्मा का
विषय केवल परमात्मा है। आँख के विषय को कान से
नहीं जान सकते। 
उसी प्रकार उस परमात्मा को आत्मा
के अलावा दूसरे इन्द्रियों के द्वारा नहीं जान सकते।
भजन ऐसा करो कि परमात्मा की पहचान हो जाए। यह
योग ध्यान से जाना जा सकता है। इसलिए हमलोगों के
यहाँ जानने के लिए वेदान्त ज्ञान है किन्तु पहचान कर
जानना असली जानना है। जब अपने से जानोगे तब
तुम शरीर इन्द्रियों से छूटोगे।
 । यह ध्यान-अभ्यास से
होगा। ध्यान में सिमटाव होता है, सिमटाव से ऊर्घ्वगति
होती है, ऊर्ध्वगति से आवरण भेदन होता है।
 जैसे
मुकदमा पड़ने पर उस तारीख में वहाँ पहुँचना पड़ता है।
उसी तरह मुस्तैदी से अपना काम करते हुए भी ईश्वर
का भजन आवश्यक है। अपना पालन-पोषण करो
साथ-साथ सदाचार का पालन भी करो। कोई ईश्वर-
भजन करे सदाचार पालन करे और उद्यम नहीं करे तो
क्या भीख माँगेंगे? 
इसमें तो सुधरते-सुधरते कोई सुधरते
हैं। विशेष तो बिगड़ता ही है। आजकल-आजकल मत
करो, भजन करो। कबीर साहब अपने जीवन में यही
दिखलाए की अपनी कमाई करते हुए भजन-ध्यान
करो। आत्मा में विश्वास मूल आधार है। जिसको
आत्मा में विश्वास नहीं है, उसे सदाचार की क्या
आवश्यकता है? वह सदाचार का पालन नहीं कर
सकता।
 उसका आवागमन पुनः-पुनः होना संभव है।
अगर बुरा ख्याल तुम्हारे मन में है तो तुम्हारा
वर्त्तमान हालत क्या है देखो। सिर्फ मान लेने की बातनहीं है, विचार ने पर ठीक जँचता है।
जो शरीर से चला गया है अर्थात् जिनकी मृत्यु
हो गई है, उसी के लिए श्राद्ध क्रिया होती है। शरीर
छूटने के बाद दुःख में न जाएँ यही सब चाहते हैं।

समय वरबाद मत करो। 
भजन करो। 
नहि ऐसो जनम
बारम्बार। 
द्रोह रखने वाला कभी चैन से नहीं रहता।
ध्यान करने से सुरत का बेड़ा बनता है।
 काम, क्रोधादि
का त्याग करो। 
भजन सत्संग करो।
 भजन करने का
अपना समय निश्चित कर रखो। 
ईश्वर-भजन करो
सत्संग ध्यान करो, सदाचार का पालन करो। 
🙏🙏🙏श्री सदगुरू महाराज की जय 🙏🙏🙏
 
आदरणीय 
सज्जनों आपको पढ़कर बहुत ही शांति की अनुभूति मिली होगी
 और मेरा आपसे निवेदन है की अंतिम में कमेंट बॉक्स में गुरु महाराज का उद्घोष करें 
जिससे हमें भी एक मोटिवेशन मिलेगा 
।।जय गुरु।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

kumartarunyadav673@gmail.com

अंतर अजब बिलास-महर्षि हरिनंदन परमहंस जी महाराज

श्री सद्गुरवें नमः आचार्य श्री रचित पुस्तक "पूर्ण सुख का रहस्य" से लिया गया है।एक बार अवश्य पढ़ें 👇👇👇👇👇👇👇👇 : प...