SWAMI VIVEKANAND SPEECH
SWAMI VIVEKANAND SPEECH 6
स्वामी विवेकानंद जी महाराज की वाणी
स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद जी महाराज
प्राणायाम साधना की पहली क्रिया यह है— "भीतर निर्दिष्ट परिमाण में साँस लो और बाहर निर्दीष्ट परीमाण में साँस छोड़ो। इससे देह संतुलित होगी।
कुछ दिन यह अभ्यास करने के बाद साँस खींचने और छोड़ने के समय ओंकार अथवा अन्य किसी पवित्र शब्द का मन-ही-मन उच्चारण करने से अच्छा होगा। भारत में प्राणायाम करते समय हम लोग श्वास के ग्रहण और त्याग की संख्या ठहराने के लिये, एक,दो,तीन चार इस क्रम से ना गिनते हुए कुछ सांकेतिक शब्दों का व्यवहार करते हैं। इसलिए मैं तुम लोगों से प्रणायाम के समय ओंकार अथवा अन्य किसी पवित्र शब्द का व्यवहार करने के लिए कह रहा हुँ।
चिंतन करना है कि—
वह शब्द श्वास के साथ लययुक्त और संतुलित रूप से बाहर जा रहा है और भीतर आ रहा है। ऐसा करने पर तुम देखोगे कि सारा शरीर क्रमश मानो लय युक्त
होता जा रहा है। तभी हम समझ पाते हैं कि यथार्थ विज्ञान क्या है। उसकी तुलना में निद्रा तो विश्राम ही नहीं।
एक बार यह विश्राम की अवस्था आने पर अतिशय थके हुए स्नायु भी शांत हो जायेंगें और तब तुम जानोगे कि पहले तुमने कभी यथार्थ विश्राम का सुख नहीं पाया। जय गुरु।
स्वामी विवेकानंद जी
प्राणायाम साधना की पहली क्रिया यह है—
"भीतर निर्दिष्ट परिमाण में साँस लो और बाहर निर्दीष्ट परीमाण में साँस छोड़ो। इससे देह संतुलित होगी।
कुछ दिन यह अभ्यास करने के बाद साँस खींचने और छोड़ने के समय ओंकार अथवा अन्य किसी पवित्र शब्द का मन-ही-मन उच्चारण करने से अच्छा होगा। भारत में प्राणायाम करते समय हम लोग श्वास के ग्रहण और त्याग की संख्या ठहराने के लिये, एक,दो,तीन चार इस क्रम से ना गिनते हुए कुछ सांकेतिक शब्दों का व्यवहार करते हैं। इसलिए मैं तुम लोगों से प्रणायाम के समय ओंकार अथवा अन्य किसी पवित्र शब्द का व्यवहार करने के लिए कह रहा हुँ। चिंतन करना है कि— वह शब्द श्वास के साथ लययुक्त और संतुलित रूप से बाहर जा रहा है और भीतर आ रहा है। ऐसा करने पर तुम देखोगे कि सारा शरीर क्रमश मानो लय युक्त
होता जा रहा है। तभी हम समझ पाते हैं कि यथार्थ विज्ञान क्या है। उसकी तुलना में निद्रा तो विश्राम ही नहीं। एक बार यह विश्राम की अवस्था आने पर अतिशय थके हुए स्नायु भी शांत हो जायेंगें और तब तुम जानोगे कि पहले तुमने कभी यथार्थ विश्राम का सुख नहीं पाया। जय गुरु।
स्वामी विवेकानंद जी
SWAMI VIVEKANAND SPEECH
इस साधना का पहला फल यह देखोगे कि तुम्हारे मुख की क्रांति बदलती जा रही है। मुख की शुष्कता या कठोरता का भाव प्रर्दशित करनेवाली रेखाएँ दूर हो जायेंगी। मन की शांतँ मुख से फूटकर बाहर निकलेगी। दूसरे तुम्हारा स्वर बहुत मधुर हो जायेगा। मैंने एक भी ऐसा योगी नहीं देखा,जिसके गले का स्वर कर्कश हो। कुछ महीने के अभ्यास के बाद ही ये चिन्ह प्रकट होने लगेंगें। इस पहले प्राणायाम का कुछ दिन अभ्यास करने के बाद प्राणायाम की एक दूसरी ऊँची साधना ग्रहण करनी होगी।
वह यह है— इड़ा अर्थात बायें नथूने द्वारा फेफड़े को धीरे-धीरे वायु से पूरा करो।
उसके बाद स्नायुप्रवाह को मेरुरज्जा के नीचे भेजकर कुण्डलिनी-शक्ति के आधारभूत, मूलाधारस्थित त्रिकोणाकृति पद्म पर बड़े जोर से आघात कर रहे हो।
इसके बाद इस स्नायुप्रवाह को कुछ क्षण के लिए उसी जगह धारण किये रहो।
उसके बाद सोचो कि तुम उस स्नायिक प्रवाह को श्र्वास के साथ दूसरी ओर से अर्थात पिंगला द्वारा उपर खींच रहे हो। फिर दाहिने नथुने से वायु धीरे-धीरे बाहर फेंको।
इसका अभ्यास तुम्हारे लिए कुछ कठिन होगा। सहज उपाय भी है। जय गुरु।
स्वामी विवेकानंद जी।
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एक तीसरे प्रकार का प्राणायाम यह है कि—
धीरे-धीरे श्वास अंदर की ओर खींचो, फिर तनिक भी देर किये बिना धीरे-धीरे वायु-रेवन करके बाहर ही श्वास कुछ देर के लिए रोककर रखो,संख्या पहले ही प्राणायाम की तरह है। पूर्वोक्त और इसमें भेद इतना ही है कि पहले के प्राणायाम में साँस अंदर रोकना पड़ता है और इसमें बाहर।यह प्राणायाम पहले से सीधा है। जिस प्राणायाम में साँस अंदर रोकना पड़ता है उसका अधिक अभ्यास अच्छा नहीं।
उसका सबेरे चार और शाम चार बार अभ्यास करो।
बाद में धीरे-धीरे समय और संख्या बढ़ा सकते हो।
तुम क्रमशः देखोगे कि तुम बहुत सहज ही यह कर रहे हो और इससे तुम्हें बहुत आनन्द भी मिल रहा है।
इस प्रकार जब देखो की तुम यह बहुत सहज ही कर रहे हो तब बड़ी सावधानी और सतर्कता के साथ संख्या चार से छेह बढ़ा सकते हो
अनियमित रूप से साधना करने पर आपका अनिष्ट हो सकता है।
SWAMI VIVEKANAND SPEECH
उपर्युक्त तीन प्रकियाओं में से पहली और अंतिम क्रियाएँ कठिन भी नहीं और किसी प्रकार की विपत्ति की आशंका भी नहीं। पहली क्रिया का जितना अभ्यास करोगे, उतना ही तुम शांत होते जाओगे। उसके साथ ओंकार जोड़कर अभ्यास करो, देखोगे,जब तुम दूसरे कार्य में लगे हुए हो तब भी तुम उसका अभ्यास कर सकते हो।इस क्रिया के फल से देखोगे तुम अपने को सभी बातों में अच्छा-ही महसुस कर रहे हो।इस तरह कठोर साधना करते-करते एक दिन तुम्हारी कुंडलिनी जग जायेगी।
जो दिन में केवल एक या दो बार अभ्यास करेंगें उनके शरीर और मन कुछ स्थिर भर हो जायेंगें और उनका स्वर मधुर हो जायेगा लेकिन जो पूर्ण रूप से साधना के लिए आगे बढ़ेगें उनकी कुंडली जागृत हो जायेगी। उनके लिये सारी प्रकृति एक नया रूप धारण कर लेगी।
उनके लिये ज्ञान का द्वार खुल जायेगा। तब फिर ग्रंथों में तुम्हें ज्ञान की खोज नहीं करनी पड़ेगी।
तुम्हारा मन ही तुम्हारे निकट अनंत ज्ञान विशिष्ट पुस्तक का काम करेगा।
स्वामी विवेकानंद जी
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