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मंगलवार, 18 अगस्त 2020

सतगुरु मेंहीं:अबके माधव मोहि उधारि

 ।।ॐ श्री सद्गुरवे नमः।।

बीसवीं सदी के महान संत सतगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की वाणी को पढें 

बन्दौं गुरुपद कंज, कृपासिन्धु नररूप हरि। 

महामोह तमपुंज, जासु वचन रविकर निकर।।


धर्मानुरागिनी प्यारी जनता!

जो पाठ आपने अभी सुना है, वह उपनिषद् का पाठ हुआ था - मण्डलब्राह्मणोपनिषद् का। यह संसार महासमुद्र है। इसमें निद्रा, भय बड़े-बड़े जीव-जंतु हैं। जो निद्रा के अंदर चले जाते हैं, तब मानो वे बड़े जीव के पेट में चले जाते हैं। उन्हें अपना कोई होश नहीं रहता। डर भी वह चीज है कि जहाँ आपको डर हो गया, वहाँ करने योग्य काम भी आप नहीं कर सकेंगे। दूसरे का अपकार करना, बुरा चिंतन करना - हिंसा है। 

वह उस समुद्र की लहर है। तृष्णा उसके भंवर हैं। फिर जल में पंक भी है। शरीर के जितने संबंधी हैं, उनकी ओर आसक्ति लगी रहती है; यही पंक है।

 सूरदासजी ने कहा है -

अबके माधव मोहि उधारि। 

मगन हौं भव अंबुनिधि में, कृपासिन्धु मुरारि।। 

नीर अति गंभीर माया, लोभ लहरि तरंग।

 लिए जात अगाध जल में, गहे ग्राह अनंग।।

 मीन इन्द्रिय अतिहि काटत, मोट अघ सिर भार।

 पग न इत उत धरन पावत, उरझि मोह सेंवार।। 

काम क्रोध समेत तृष्णा, पवन अति झकझोर। 

नाहिं चितवन देत तिय सुत, नाक नौका ओर।। 

थक्यो बीच बेहाल विहवल, सुनहु करुणा मूल। 

स्याम भुज गहि काढ़ि डारहु, ‘सूर’ ब्रज के कूल।।

इस संसार-सागर को पार करो। 


अवश्य ही सांसारिक संबंध की ममता में लोग लगे रहते हैं। भजन के समय वे ही सब याद आते हैं, भजन बनता नहीं। इसलिए निद्रा, भय, तृष्णा आदि से बचो।

 मन में होता है कि बचना चाहिए; किंतु बच नहीं सकते हैं। विचार के द्वारा बच नहीं सकते। इसके अतिरिक्त और कुछ होना चाहिए। 

पहले श्रवण ज्ञान, फिर मनन ज्ञान, निदिध्यासन ज्ञान और अनुभव ज्ञान।

केवल मनन या विचार ज्ञान से ही हम संसार की लसंग (चिपकन) से, भंवर से, जीव-जन्तु से, पंक से बचें, यह संभव नहीं है। विचार से बुद्धि में कुछ स्वच्छता आती है, किंतु फिर उसमें मैल जमती है। इसके लिए सूक्ष्ममार्ग का अवलंब करने के लिए कहा। 

बाबा गुरु नानकदेवजी ने कहा -

भगता की चाल निराली। 

चाल निराली भगता केरी विखम मारगि चलणा।। 

लबु लोभु अहंकार तजि त्रिसना बहुतु नाहीं बोलणा।। 

खंनिअहु तीखी बालहु नीकी एतु मारगि जाणा।। 

गुर परसादी जिनि आपु तजिया हरि वासना समाणी।।

 कहै नानक चाल भगताह केरी जुगहु जुग निराली।।

कबीर साहब से पूछते हैं तो वे कहते हैं –

गुरुदेव बिन जीव की कल्पना ना मिटै, गुरुदेव बिन जीव का भला नाहीं।

 गुरुदेव बिन जीव का तिमिर नासे नहीं, समुझि विचारि ले मने माहिं।।

 राह बारीक गुरुदेव तें पाइए, जनम अनेक की अटक खोलै। कहै कबीर गुरुदेव पूरन मिलै, जीव और सीव तब एक तोलै।।

यही सूक्ष्म मार्ग है। कितने जन्म हुए, कितने शरीर में अटके। यह शरीर भी चला जाएगा। हमलोगों के बहुत शरीर हुए। जबसे शरीर हुए, तबसे शरीर में अटके हुए हैं।

 आप ख्याल कीजिए कि कोई कैदी हो, तो उसका चित्त सदा लगा रहता है कि इस कैदखाने से निकल जाता। किंतु रास्ता मिलता नहीं। यदि पहरेदार या कोई उसे निकलने का रास्ता बता दे, तो वह उससे निकल जाय। लोग इस संसार से निकलने का रास्ता नहीं जानते। 

यदि कोई इस राह को बता दे तो वह कितना बड़ा उपकारी होगा। सूक्ष्ममार्ग पर चलने से आप संसार से निकल जाइएगा। अपने शरीर से भी निकल जाइएगा। यह संसार और आपका शरीर - दोनों एक ही तत्त्व से बने हैं। जितने तल आपके शरीर के हैं, संसार के भी उतने ही तल हैं। 

आपके शरीर और संसार में बहुत संबंध है।

यदि आप शरीर से पार हो जाएँ, तो संसार से भी पार हो जाएँगे। यह स्थूल मण्डल है, इससे महान सूक्ष्म मण्डल, इससे भी महान कारण मंडल और इससे भी महान महाकारण मंडल है। ये चार दर्जे ब्रह्माण्ड के हैं। 

आपके शरीर में चार दर्जे हैं।

 अपने शरीर में जो स्थूल तल है और संसार में जो स्थूल तल हैं - दोनों में इतना संबंध है कि आप जाग्रत में शरीर के स्थूल तल पर रहते हैं, तो संसार के भी स्थूल तल पर रहते हैं। जब स्वप्न में आपको स्थूल शरीर का ज्ञान नहीं रहता, तो स्थूल संसार का भी ज्ञान नहीं रहता। इस नमूने से समझना चाहिए कि 

शरीर के जिस तल पर आप रहते हैं, संसार के भी उसी तल पर आप रहते हैं।

 शरीर के जिस तल को आप छोड़ते हैं, संसार के भी उस तल को आप छोड़ते हैं। इस प्रकार यदि आप शरीर के सब तलों को पार करेंगे, तो संसार के भी सब तलों को पार कर जाएँगे। 

जिसने पिण्ड को जीता, उसने ब्रह्माण्ड को जीता।

 इसको जीतने के लिए सूक्ष्ममार्ग का अवलंब करने कहा। संसार में रास्ता देखते हैं, तो पैर से चलते हैं। यहाँ देखने के लिए तीन दृष्टियों का वर्णन हुआ - 

एक अमा, दूसरी प्रतिपदा और तीसरी पूर्णिमा।

 कबीर साहब ने आँख बन्द करके दृष्टिसाधन करने कहा –

बंद कर दृष्टि को फेरि अंदर करै, घट का पाट गुरुदेव खोले। कहै कबीर तू देख संसार में, गुरुदेव समान कोइ नाहिं तोलै।।


 गुरु नानकदेवजी भी तीन बन्द लगाकर ध्यान करने कहते हैं -

तीनों बंद लगाय के, सुन अनहद टंकोर।

 नानक सुन्न समाधि में, नहिं साँझ नहिं भोर।।

‘आँख कान मुख बंद कराओ, अनहद झींगा शब्द सुनाओ। दोनों तिल एक तार मिलाओ, तब देखो गुलजारा है।

‘ - कबीर साहब

आपसे जो हो सके, जो सरल मालूम हो, वह कीजिए। भगवान बुद्ध की प्रतिमा में देखिए, वे आँखें बन्द करके बैठे हुए ध्यान में मिलेंगे। व्यासदेवजी भी आँख बन्द करके बैठे हुए हैं और ध्यान कर रहे हैं। इस तरह 

यदि आप आसानी से सूक्ष्म मार्ग को पकड़ना चाहें तो अमादृष्टि से कीजिए।

 उस सूक्ष्ममार्ग पर पैर नहीं चल सकता।

बिन पावन की राह है, बिन बस्ती का देश।

 बिना पिण्ड का पुरुष है, कहै कबीर संदेश।।


देखते-देखते स्वयं उस पर चल पड़ेंगे। 

सिमटाव में ऊर्ध्वगति होती है।

जो वस्तु जितनी सूक्ष्म होती है, उसके सिमटाव से उसकी उतनी अधिक ऊर्ध्वगति होती है। सुरत से कोई विशेष सूक्ष्म नहीं हो सकता। इसका सिमटाव होने से इसकी विशेष ऊर्ध्वगति होगी। इसके लिए किसी जानकार से जानकर भजन कीजिए। 

आँखें बंद करके ध्यान करने पर कहते हैं कि नींद आ जाती है, तो जो निशाना बताया गया है, उसको दृढ़ता से पकड़ो, नींद नहीं आएगी। यदि निशाना छूट जाय, मन बहक जाए, तो अवश्य ही नींद आ जाती है।

सतोगुण में वृत्ति रखने को कहा। इड़ा-पिंगला में तमोगुण-रजोगुण की प्रधानता रहती है। सुषुम्ना में सतोगुण की प्रधानता रहती है।

 बाबा नानक देवजी ने कहा -

सुखमन कै घरि राग सुनि सुन मंडल लिव लाइ। 

अकथ कथा वीचारीअै मनसा मनहिं समाइ।।

एक बंगाली साधु ने कहा –

बायें इड़ा नाड़ी दक्खिणे पिंगला, रजस्तमोगुणे करिते छे खेला। मध्य सत्वगुणे सुषुम्ना विमला, धरऽ धरऽ तारे सादरे।।

सुषुम्ना में अपने को स्थिर कीजिए। इस सूक्ष्म मार्ग पर पहले मन-सहित चेतन आत्मा चलती है। चलते-चलते मन आगे नहीं जा सकता। केवल चेतन आत्मा चलती है। 

संत तुलसी साहब ने कहा -

सहस कमलदल पार में, मन बुद्धि हिराना हो।

 प्राण पुरुष आगे चले, सोइ करत बखाना हो।।

सहस्रदल कमल के ऊपर त्रिकुटी का स्थान है। यह बाहर में नहीं अंतर में है। वहाँ जाकर मन-बुद्धि हेरा जाती हैं। इसके आगे प्राण पुरुष या चेतन आत्मा चलती है। सूक्ष्ममार्ग के द्वारा सबको संसार से पार होना चाहिए। संतों ने संसार से पार हो जाने के लिए कहा। 

यह संसार कैदखाना है।

 एक-एक पिण्ड एक-एक कोठरी है। जो कोठरी से छूटेगा, वह घेरे से भी छूटेगा। इसका अभ्यास अपने घर में करो या कहीं दूर देश में करो; किंतु अपने को संयम में रखो। पंच पापों से बचते रहो। 

झूठ, चोरी, नशा, हिंसा और व्यभिचार नहीं करना चाहिए।गरीबी-अमीरी का ख्याल छोड़ दो। सच्ची कमाई से अपना गुजर-बसर करो।

 दरिया साहब ने भी सूक्ष्ममार्ग के लिए कहा –

जानि ले जानि ले सत्त पहचानिले, सुरति साँची बसै दीद दाना। खोलो कपाट यह बाट सहजै मिलै पलक परवीन दिवदृष्टि ताना।। 

ऐन के भवन में बैन बोला करै चैन चंगा हुआ जीति दाना। 

मनी माथे बरै छत्र फीरा करै जागता जिन्द है देखु ध्याना।।

 पीर पंजा दिया रसद दाया किया मसत माता रहै आपु ज्ञाना। हुआ बेकैद यह और सभ कैद में झूमता दिव्य निशान बाना। 

गगन घहरान वए जिन्द अमान है जिन्हि यह जगत सब रचा खाना।

 कहै दरिया सर्वज्ञ सब माहिं है कफा सब काटि के कुफुर हाना।।

अमीरी का लालच मत करो और गरीब होकर दु:खी न होओ। इन्द्रियों के भोग में पड़कर गरीब, अमीर - दोनों कैद में पड़े रहते हैं। 

जो अपने को इन्द्रियों के भोग से बचाकर रखते हैं, तो बहुत भले हैं।

 गरीब भी अपने को इन्द्रियों के भोग से बचाकर रखते हैं, तो वे भी अच्छे हैं। इसमें दोनों बराबर हैं। इसलिए 

अपने को विषयों से बचाकर भजन कीजिए।

श्री सद्गुरु महाराज की जय

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