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शनिवार, 2 मई 2020

शिष्टाचार

 शिष्टाचार
बीसवीं सदी के महान संत सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के प्रिय
 शिष्यों में महर्षि योगानंद परमहंस जी महाराज को भी स्थान प्राप्त है 
आइए उनका विश्लेषण शिष्टाचार पर 
पूरा पूरा सारगर्भित बानी को सुनते हैं पढ़ते हैं ।
शिक्षा दीक्षा द्वारा सुसंस्कृत और विनम्रता पूर्वक आचरित शस्त्र उक्ति रीति रिवाज को शिष्टाचार कहते हैं ।
यूं तो शिष्टाचार का सामान्य अर्थ होता है बड़ों के प्रति आदर भाव रखना 
लेकिन विशेष अर्थ में तो पंचशील विनम्रता विशिष्टता सहानुभूति पड़ता आदि सद्गुरु भी शिष्टाचार के आवश्यक अंग माने जाते हैं।
  यज्ञ तप  दान वेद का स्वाध्याय और सत्य भाषण यह पांच पवित्र आचरण शिष्ट पुरुषों में सदा रहते हैं ।
जो काम क्रोध लोभ घमंड उद्दंडता इस दुर्गुण को जीत लेते हैं तथा इसी दुर्गुण हीनता को धर्म मानकर संतुष्ट रहते हैं वही शिष्ट उत्तम पुरुष कहलाते हैं ।।
वे ही ध्यान भजन और स्वाध्याय में लगे रहते हैं 
कभी मनमाना आचरण नहीं करते हैं शिष्टाचारी पुरुष में गुरु की सेवा क्रोध का अभाव सत्य भाषण और दान यह चार सद्गुण अवश्य रहते हैं ।।

रविंद्र नाथ टैगोर ने कहा है :-अगर मनुष्य निरंतर सुखी रहना चाहता है तो उसे परोपकार के लिए जीवित रहना चाहिए "।

महात्मा शेख सादी ने कहा है :-यदि मनुष्य परोपकारी नहीं है तो उसमें और दीवार पर खींचे चित्र में क्या फर्क है "।

वास्तव में ऐसा ही कर्म करना चाहिए जिसमें बहुसंख्यक लोगों का हित होता हो 
दूसरों को भी श्रेष्ठ कार्य करने का प्रोत्साहन मिलता हो और 
स्वयं करने वाले को आत्म उन्नति का लाभ मिलता हो 

वेद का सार है सत्य ,सत्य का सार है इंद्रिय संयम ,और इंद्रिय संयम का सार है त्याग, यह त्याग शिष्ट पुरुषों में सदा विद्यमान रहते हैं 
श्रेष्ठ पुरुष को मुख्यतः चार श्रेणियों मानी जाती है 
पहला संबंध वृद्ध 
दूसरा वयोवृद्ध 
तीसरा पद वृद्ध और 
चौथा ज्ञान वृद्ध 

संबंध वृद्ध :-
जो संबंध में मामा चाचा मौसा आदि हो पर उम्र छोटी हो तो उन्हें भी बड़ा मान कर सम्मान करना चाहिए।

 वयोवृद्ध :-
जो उम्र में बड़े हैं वह भी आदरणीय और पूजनीय है ।

पद वृद्ध :-
जो पद में बड़ा है उम्र में छोटा है वह भी सम्माननीय है जैसे वीडियो उम्र में छोटा है लेकिन चपरासी ज्यादा उम्र के है तो चपरासी ही प्रणाम करेंगे क्योंकि वह पद में बड़े हैं ।

ज्ञान वृद्ध :-
ज्ञानी छोटी अवस्था के भी हो तो उनकी श्रेष्ठता स्वीकारने चाहिए ।।

धर्म आचार्य मनु महाराज ने मनु स्मृति में लिखा है :-
"सिर के बाल सफेद होने के बाद से कोई बड़ा नहीं होता जो तरुण भी पढ़ा लिखा शास्त्र मर्मज्ञ हो तो देवता उसे वृद्ध कहते हैं जो व्यक्ति किसी भी तरह से श्रेष्ठ है उन्हें दिया गया सम्मान व उनके प्रति किया गया आदर भाव को शिष्टाचार कहते हैं "

शिष्टाचार मानवता का एक आवश्यक अंग है 
जो शिष्टाचारी नहीं है वे दुनिया के किसी भी अच्छे गुण को ग्रहण नहीं कर सकते हैं
 उनका जीवन दुख मय बना रहता है 
शिष्टाचार के पालन से ही भौतिकी या आध्यात्मिक ज्ञान लाभ कर सकता है ।
इतिहास साक्षी है कि जिन लोगों ने ऊंची गति पाई वे अत्यधिक विनम्र और शिष्टाचारी थे।

 भगवान श्रीराम ने कहा है :-
हे भरत !वह प्राणी मुझे प्राणों के समान प्रिय है 
जो सबका मान करता है और अपना मान नहीं चाहता है जब तक आदमी स्वेच्छा से अहंकार को सबसे नीचा नहीं रखता "
तब तक उसे मुक्ति नहीं मिलती है
 श्रेष्ठ लोगों का कहना जो नहीं मानता है 
अपनी बुद्धि पर ही चलता है उसका भला होना मुश्किल है ।

महाभारत के युद्ध में पांडव की विजय टेढ़ी खीर थी 
पर शिष्टाचार के बल पर हुए उस घोर संग्राम में विजयी हो गए ।

कथा इस प्रकार है 
✍👉कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों दल के योद्धा लड़ाई के लिए ब्यूह बना कर खड़े थे ।
वीरों के धनुष चढ़ चुके थे 
सहसा धर्मराज युधिष्ठिर जी ने अपने अस्त्र शस्त्र और कवच उतार कर रख दिए
 और पैदल ही कौरव सेना में भीष्म पितामह की ओर चल पड़े ।
बड़े भाई को इस तरह जाते देख 
भीम अर्जुन नकुल और सहदेव भी साथ हो गए ।
भगवान श्रीकृष्ण भी पांडव के साथ थे 
भीम अर्जुन पूछने लगे महाराज 
यह आप क्या कर रहे हैं ?

भगवान श्री कृष्ण ने सब को शांत करते हुए कहा :-
सदा धर्म का आचरण करने वाला 
महात्मा युधिष्ठिर इस समय भी धर्म में ही स्थित है 
उधर कौरव दल में कोलाहल मच गया 
कहने लगे कि डरपोक युधिष्ठिर हमारी सेना देखकर भयभीत हो गए 
युधिष्ठिर पितामह के पास पहुंच कर चरणों में प्रणाम करके हाथ जोड़कर बोले पितामह 
हम लोग आपके साथ युद्ध करने को विवश हो गए हैं इसके लिए आप हमें आज्ञा और आशीर्वाद दें ।
भीष्म बोले अब मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूं 
तुम विजय प्राप्त करो जाओ युद्ध करो 
इसके बाद कृपाकार्य, द्रोणाचार्य आदि गुरुजनों को प्रणाम करके अनुमति मांगी ।
सबने भीष्म की तरह सब बातें कर आशीर्वाद दिया
 इस तरह सहानुभूति के चलते पांडवों की विजय हुई ।
जो अभिवादन शील है जो सदा वृद्धों की सेवा करने वाला है 
उनकी चार चीजें बढ़ती है :-आयु ,वर्ण ,सुख और बल ।।

संत कबीर साहब ने बहुत ही अच्छा कहा है :-
शीलवंत सबसे बड़ा सर्व रतन की खानी 
तीन लोक की संपदा रही सीन में आनी ।।

अब तो वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं कि 
अभिवादन से लाभ होते हैं ।
अभिवादन का वैज्ञानिक रहस्य दैनिक जागरण (29 मई 2004 )में से करोड सदियों से हमारे देश में अभिवादन करने नमस्ते या चरण स्पर्श कर बड़े बुजुर्गों से आशीष लेने की परंपरा कायम है 
आपको यह जानकर शायद थोड़ा आश्चर्य होगा कि
 अब वैज्ञानिक शोधों की कसौटी पर भी यह परंपरा खरी उतरी है ।
वस्तुतः जब कोई शख्स किसी बड़े बुजुर्ग या सम्मानित व्यक्ति को प्रणाम करता है या उसका चरण स्पर्श करता है तो उस दौरान बड़े बुजुर्ग प्रायः सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देते हैं ।
रिसर्च के अनुसार आशीर्वाद की इस प्रक्रिया में बड़ों के हाथ से उर्जा अभिवादन करने वाले के शरीर में प्रविष्ट हो जाती है 
यह सकारात्मक ऊर्जा हमें उत्साह से पूरित कर देती है इस तरह जब हम किसी का अभिवादन करते हैं 
और दोनों हाथों को जोड़ते हैं तो उस दौरान हाथों से कॉस्मिक मैग्नेटिक वेव प्रवाहित होती है 
यह तरंग अभिवादन करने वाले और सम्मान किए जाने वाले शख्स के इर्द-गिर्द संचालित होती है 
यही नहीं अभिवादन करते समय अभिवादन करने वाले व्यक्ति के शरीर के अंदर कीटाणु को अंदर नष्ट करने वाले स्रााव ही प्रवाहित होने लगते हैं ।
इस कारण अभिवादन करने वाला मनुष्य नकारात्मक विचारों और भावों से दूर हो जाता है 
ठीक इसके विपरीत जो बड़े आदमी का उपहास करता है उसका परिणाम सुनिए

 "शिष्टाचार के अभाव में 56 कोटी यदुवंशी का नाश हो गया ।"
एक बार द्वारिका के पास पिडारक क्षेत्र में ऋषियों की जमात पहुंची 
उस जमात में विश्वामित्र ,वामदेव ,अत्रि, कन्वे, असित दुर्वासा ,भृगु ,कश्यप ,वशिष्ठ ,तथा नारद जैसे देवर्षि और महर्षि गन थे ।
वे लोग तत्व ज्ञान की चर्चा किया करते थे 
संध्या के समय यदुवंशी केेे राजकुमार भी  द्वारिका से घूमने निकले थे  ।
वे लोग युवा अवस्था राजकुल धनबल ,सीलबल शरीर व शरीर बल से युक्त थे 
उस समय उन्हें पूरी स्वच्छंदता थी 
साथ में कोई वृद्धि नहीं था
 ऋषियों को देखकर यादव कुमार के मन में परिहास करने का सुझाव मन में आया
 भगवान श्री कृष्ण के पुत्र जामवंती नंदन सांब को सबों ने साड़ी पहनाई और पेट पर कुछ वस्त्र बांध गर्भवती का रूप बना दिया 
सब लोग ऋषि के समीप गए सांब घुंघट से मुंह छुपाए रखा था 
किसी एक ने कहा महर्षि गन यह सुंदरी गर्भवती है जानना चाहती है कि इसके गर्व से कौन सी संतान होगी लज्जा बस स्वयं पूछ नहीं पाती है ।
आप  भविष्य दर्शी और सर्वज्ञ हैं 
कृपा करके बतला दीजिए 
लेकिन यह पुत्र चाहती है 
महर्षि ओं की सर्वज्ञता एवं शक्ति का यह परिहास था दुर्वासा ऋषि ने अमर्ष में आकर शाप दिया 
कि मूर्खों यह अपने पूरे कुल का नाश करने वाला मुसल उत्पन्न करेगा 
अन्य ऋषि ने दुर्वासा जी का   समर्थन कर दिया ।

भयभीत यादव कुमार वहां सेेेे भागकर थोड़ी दूर पर रुका ।
सांब के पेट पर बंधा हुआ वस्त्र तो उससे खोला तो मुसल निकला ।
वे लोग राज्यसभा पहुंचे सारी घटना 
उग्रसेन को सुनाकर मुसल सामने रख दिया  

महाराज की आज्ञा से 
मुसल को घिसते घिसते मूसल को चूर्ण बना दिया गया
 छोटा सा लोहखंड बच गया 
जो अब चूर्ण नहीं हो सकता था 
उस लोखंड को समुद्र में फेंक दिया  ।
महर्षि का श्राप मिथ्या भला कैसे हो सकता है?
 लौह चूर्ण लहरों में बह कर किनारे लगे और एरका नामक घास के रूप में उग आया 
लोहखंड को एक मछली  ने निगल लिया था
 जो एक मछुआरे के द्वारा पकड़ी गई 
और जरा नमक व्याधा के हाथ बेच दिया गया
  व्याध ने लोहखंंड का बान बनाया
 यादव कुमार की जत्था एक बार समुद्र तट पर पहुंचा
 वे लोग शस्त्र से सुसज्जित थे 
साथ ही थोडी बातों में बुरी तरह झगड़ परे  
आपसी  प्रहार में अस्त्र शस्त्र समाप्त हो जाने पर 

एडका घास उखाड उखाड़ कर 
लड़ने लगे। 
परस्पर आधात करते करते उसकी चोट से सबके सब मारे गये । 
सब के मर जाने पर भगवान श्री कृष्ण उदास एक वृक्ष की जड़ पर बैठे थे 
उस समय जरा नाम का ब्याध ने मृग के भ्रम से उनके चरण कमल में वही बाण मारा ।
जिससे यदुवंश का नाश होना था ।
इस प्रकार शिष्टाचार के अभााव में 56 करोड़ यदुवंशियों का विनाश हो गया
 शिष्टाचार का पालन करें सुखी रहें ।
।।जयगुरू ।।

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